बेहद ज़रूरी है, सामाजिक समस्याओं पर मंथन करना


Posted March 27, 2021 by humaarisarkaar

मेरा नाम मंजू राजपूत है और मैं राजस्थान के उदयपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्र की निवासी हूँ।
 
मेरा नाम मंजू राजपूत है और मैं राजस्थान के उदयपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्र की निवासी हूँ। मैं पिछले 15 वर्षों से सामाजिक संस्थाओं के साथ जुड़ी हूँ। शुरूआती समय में मैंने बालिकाओं की शिक्षा पर काफी काम किया है तथा पिछले 12 वर्षों से नियमित रूप से आजीविका ब्यूरो नाम की सामाजिक संस्था के साथ काम करती हूँ।

मैंने अपनी पढ़ाई काफी मुश्किल से पूरी की है। प्रारम्भिक शिक्षा के बाद गाँव में पढ़ाई की सुविधा नहीं होती थी इसलिए गाँव से 8-10 किलोमीटर की दूरी पर ही स्कूल होता था। तो ऐसे में उस समय मेरे लिए पढ़ाई कर पाना बेहद मुश्किल हो गया। मेरी दादी ने उस समय बार-बार मेरे पापा को कहा की अब लड़कियों को पढ़ाने के बजाय सिर्फ घर का काम सिखाओ|

उस समय मेरे पापा ने दादी की बात नहीं मानते हुए मुझे और दो छोटी बहनों को उदयपुर ले आये तथा यहाँ पर दाखिला करवा दिया। मां गाँव में रहती थी ताकि खेतों के काम कर पाएं तो ऐसे में मैंने अपनी दोनों बहनों की पढ़ाई भी करवाई और खुद भी पढ़ी। शादी जल्दी हो गयी लेकिन मेरे ससुराल वालों का मुझे बहुत सहयोग मिला जिससे मैं आगे की पढ़ाई जारी रख पायी। पढ़ाई के साथ-साथ मैंने काम करना भी शुरू कर दिया तथा इस प्रकार मैंने शिक्षा के रूप में एम.ए. एम.फिल. एवं बी.एड. भी पूरा कर लिया।

2008 में जब आजीविका संस्था से जुड़ी तो तबसे संस्था के कार्यों में इस तरह से रूचि बढ़ गयी कि बस फिर इसी में काफी मन लग गया। इसमें मुझे प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवारों की स्थिति को समझने का मौका मिला कि इस वर्ग के साथ काम करने की बहुत जरूरत है।



महिलाओं और किशोरियों के साथ काम करने का मन शुरू से ही था, हमेशा यही लगता था कि क्यों महिलाओं को और लड़कियों को इतने नियमों में रहना पड़ता है। ये बात मैं हमेशा सोचती हूँ और संस्था के साथ काम करते हुए बहुत सीखा है और महिला की पीड़ा और उसको सोच को बहुत गंभीरता से समझने की कोशिश की है। इसलिए कुछ चीजें हैं जो मुझे अक्सर विचलित करती हैं जो मैं आप सभी के साथ साझा कर रही हूँ।

अभी राजस्थान में पंचायती राज चुनाव सितम्‍बर-अक्‍टूम्‍बर माह में हुए हैं तो सोचा कि उन्ही पर आधारित कुछ पहलुओं पर बात करी जाए ताकि हम सभी इनके समाधानों की तलाश करें और एक व्यापक चर्चा का माहौल बनाएं।

समस्या 1: पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की भूमिका:

कहने के लिए तो कह दिया गया है कि भारत के लगभग सभी राज्यों में महिलाओं को पंचायती राज व्यवस्था में 50 प्रतिशत आरक्षण है। लेकिन क्या सिर्फ आरक्षित कर देना ही काफी है? क्या महिलाएं यह अधिकार मिलने के इतने वर्षों के बावजूद खुद सक्षम हो पायी हैं? यदि हाँ तो कितना? आप भी यदि अपने आसपास देखें तो अधिकाँश महिलाएं केवल चुनाव के समय ही एक चेहरे के तौर पर सामने दिखाई देती हैं लेकिन एक बार चयनित होने के बाद उनकी सत्ता पति एवं ससुर के हाथों चली जाती है। ऐसे उदाहरण हमें देखने को मिले हैं उदयपूर, डुगरपूर, राजसमन्‍द, बाँसवाड़ा जिले के कुछ ऐसे ब्लॉक हैं जहाँ पर पंचायतों में बोलने के लिए तो महिला सरपंच हैं लेकिन उनकी कुर्सी पर ससुर या पति बैठकर ग्राम सभा कर रहे हैं, और तो और महिला जब सरपंच पद पर जीती तो माला भी पति के गले में पहनाई गईं|

ऐसा नहीं है कि सरकार को ये सब बातें मालुम नहीं हैं लेकिन बावजूद इसके इन सब चीजों पर कोई एक्शन नहीं दिखाई पड़ता। अगर ये सब भी होना है तो फिर महिलाओं की भागीदारी का क्या मतलब?

समस्या 2: वार्ड पंच की भूमिका के मायने:

हम सभी जानते हैं कि पंचायती राज व्यवस्था में सरपंच के अलावा प्रत्येक वार्ड से एक वार्ड सदस्य का चुनाव होता है जिसे लोग बड़ी उम्मीदों के साथ अपने वार्ड के विकास हेतु चयनित करते हैं। लेकिन इसके बाद क्या होता है?

वार्ड पंच की भूमिका ग्राम पंचायत विकास योजना में भी बहुत महत्वपूर्ण है। इसके तहत़ वार्ड पंच द्वारा वार्ड सभा का आयोजन करवाना और उसमें वार्ड की जो समस्‍याऐं ग्राम पंचायत विकास योजना द्वारा ग्राम सभा में शामिल करवाना होता है। वार्ड क्षेत्र में समस्‍त निर्माण कार्य के खर्च का रिकॉर्ड रखना, वार्ड के विकास कार्यों की निगरानी करना, जन हित के मुद्दों एवं जन उपयोगी सुविधा की पहचान कर पंचायत को सुझाव देना होता है, लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ देखने को नहीं मिलता। कहीं न कहीं सरपंच एवं अन्य प्रतिनिधियों के प्रभाव में अक्सर दबकर केवल वार्ड सदस्य की भूमिका एक पद मात्र ही रह जाती है और वे इस वजह से चाहते हुए भी स्वतंत्र रूप से अपने वार्ड की समस्याओं पर काम नहीं कर पाते।

आज भी ये समस्या भारत के अधिकांश राज्यों में देखने को मिलती है। ऐसे में सरकार को उनकी क्षमता एवं समस्याओं का निपटारा करने हेतु कुछ संस्थागत व्यवस्था बनानी चाहिए। सरकार को वार्ड सदस्य के साथ-साथ अन्य प्रतिनिधियों की समस्याओं एवं विकास कार्यों में उनकी क्षमता को बढ़ाने पर काम करने की बेहद जरुरत है। अन्यथा वार्ड सदस्य की भूमिका का फिर औचित्य क्या रह जाता है?

बस अभी के लिए इन्हीं 2 सवालों को आपके समक्ष छोड़ रही हूँ ताकि आप भी समझें कि यदि यही सब चलता रहा तो हम आने वाली पीढ़ियों को क्या सन्देश दे रहे हैं? https://humaarisarkaar.in/%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%B9%E0%A4%A6-%E0%A5%9B%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A5%88-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%B8/
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Last Updated March 27, 2021