क्या ग्राम सभा को लेकर हम जागरूक नागरिक हैं?


Posted March 6, 2021 by humaarisarkaar

संवैधानिक तौर पर वर्ष 1993 के बाद पंचायतों को सरकार का दर्जा देने का उद्देश्य यही था
 
संवैधानिक तौर पर वर्ष 1993 के बाद पंचायतों को सरकार का दर्जा देने का उद्देश्य यही था कि हम सभी को ज़्यादातर सेवाएं हमारे नज़दीक ही मिले, समय पर मिले तथा साथ ही स्थानीय स्तर पर लोगों का सशक्तिकरण हो| लेकिन अभी भी कितने लोग हैं जो वाकई में जानते हैं कि पंचायतों की हमारे जीवन में असल भूमिका क्या है? या फिर सरकार ने जो योजनायें चलाई हैं वो क्या हैं, उनका असली मकसद क्या है?

ग्राम सभा की बैठक में क्या होता है?
आप में से जो पाठक किसी भी ग्राम पंचायत के अंतर्गत आते हैं, जानते होंगे कि प्रत्येक ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम सभा की बैठक का आयोजन किया जाता है| इसका उद्देश्य होता है कि बात को वहां सुना जाए तथा सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का लाभ आम लोगों तक पहुँच पाए| ग्राम सभा की बैठक में मौजूद ग्रामवासी अपने कार्यों से सम्बंधित मांगों को पंचायत प्रतिनिधियों के समक्ष रखते हैं | इसके बाद कार्यवाही रजिस्टर में दस्तावेज करने की जिम्मेदारी पंचायत सचिव की होती है|

ग्राम सभा बैठक में आम लोग किस तरह बेहतर भूमिका निभा सकते हैं?
पंचायती राज अधिनियम के मुताबिक़ ग्राम सभा की बैठक के दिन सभी गतिविधियाँ को पंचायत प्रधान तथा पंचायत सचिव द्वारा लोगों के सामने पेश किया जाना चाहिए| ऐसा न होने की स्थिति में आपका हक़ बनता है कि आप उनसे सवाल पूछें और उन्हें, सभी के सामने कार्यवाही रजिस्टर भरने को कहें| इसके अलावा इसमें यह भी प्रावधान है कि कार्यवाही रजिस्टर में गतिविधियाँ/प्रस्ताव डालने के उपरान्त, प्रधान एवं सचिव द्वारा उस दिन की कार्यवाही लिखने के बाद उसे स्टाम्प और हस्ताक्षर करके समापन किया जाये| इस सबके बाद पंचायत सचिव को उस दिन की पूरी कार्यवाही को ग्राम सभा के सामने पढ़कर सुनाना होता है|

आपकी जानकारी में ऐसे भी लोग होंगे जो कहते होंगे कि पंचायत में उनके कोई काम नहीं होते, या फिर पंचायत उनकी बात नहीं सुनती! लेकिन इसका क्या कारण हो सकता है? क्या हमें मालुम है कि हमारे अधिकार क्या हैं? उदाहरण के तौर पर आप-हम में से कितने लोग हैं जो वास्तव में यह जांच करते हैं कि जो ग्राम सभा में कार्यवाही रजिस्टर में गतिविधियाँ डाली जाती हैं, वे क्या हैं? क्या आपके सामने कार्यवाही रजिस्टर को भरा जाता है? ग्राम सभा में आपने जो मांग रखी, क्या वह उसमें दर्ज की गयी? क्या सभी पात्र लोगों के कार्य शामिल करने के बाद पंचायत सचिव और प्रधान/सरपंच द्वारा उसको समापन करके स्टाम्प हस्ताक्षर किये जाते हैं?

अक्सर देखने को मिलता है कि जब ग्राम सभा की बैठक होती है तब ज्यादातर लोग बैठक में तो आते हैं लेकिन ज्यादा समय न होने की वजह से रजिस्टर में अपने हस्ताक्षर करके चले जाते हैं| इसलिए कहने का अर्थ यही है कि जब हम-आप ही अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं है या फिर हमारे पास उन कार्यों के लिए समय ही नहीं है, तो फिर ऐसे में किसी से अपेक्षा भी क्यों करें!

‘सार्वजनिक सूचना बोर्ड’ की पहल क्या है?
इसके अलावा पिछले वर्ष पंचायती राज मंत्रालय और ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा पारदर्शिता तथा जवाबदेही को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पूरे भारतवर्ष की हर ग्राम पंचायत में ‘सार्वजनिक सूचना बोर्ड’ लगाने के निर्देश दिए गए| इसका उद्देश्य है की ग्राम पंचायत अपनी ‘ग्राम पंचायत विकास योजना’ का ब्यौरा बोर्ड के माध्यम से लोगों के सामने रखे| इससे आम लोग भी यह जान सकेंगे की उनकी ग्राम पंचायत में एक वित्तीय वर्ष में कौन से मद में कितना पैसा आया तथा किन गतिविधियों पर खर्चा हुआ|

लेकिन क्या इसमें भी समस्याएं हैं?
अलग-अलग भाषाओँ का इस्तेमाल
सोच तो बहुत बेहतरीन है, लेकिन इसमें कुछ समस्याएं हैं! समस्या यह है कि एक ही राज्य के भीतर ही काफी विभिन्नता देखने को मिलती है| उदाहरण के तौर पर अगर हिमाचल प्रदेश की बात करूँ तो कुछ पंचायतों ने ये बोर्ड हिंदी भाषा में बनाये हैं तो कुछ पंचायतों ने अंग्रेजी भाषा में| आपके साथ एक पंचायत द्वारा लगाये गए बोर्ड का फोटो शेयर कर रहा हूँ|

आम लोगों के लिए समझना मुश्किल
क्या आम ग्रामवासी इस बोर्ड को समझ पायेगा? जैसे ‘14th FC, VMJSY, DCP 5%, RAY, MMAY CRF’ इत्यादि योजनाओं से सम्बंधित जानकारी है लेकिन वह आम भाषी और सरल शब्दों में नहीं है| 4-5 पंचायत के प्रतिनिधियों एवं पंचायत सचिवों से बात करके मालुम चला कि इस बोर्ड पर अनुमानित लागत 30 हजार से 50 हजार रुपये तक की थी| तो ऐसे में यह सवाल भी लाज़मी है कि आखिर यह जानकारी कैसे पहुंचाई जाएगी?

मगर फिर लोग आवाज़ क्यों नहीं उठा रहे हैं?
लेकिन इस सबके पीछे कहीं न कहीं लोगों में भी तो कमी है! लोग क्यों अपनी आवाज़ नहीं उठाते? क्यों अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं होते? ऐसा पाया गया है कि जब लोग अपनी आव़ाज उठाते हैं तब सरकार भी बेहतर प्रदर्शन करने का प्रयास करती है| स्थानीय प्रशासन द्वारा प्रयास सिक्के का एक ही पहलू है|

इस छोटे से उदाहरण के जैसे कितने ही ऐसे वाक्या होंगे| सोचना यह भी पड़ेगा की क्यों अपने अधिकारों के प्रति नागरिक जागरूक नहीं हैं, और अगर हैं तो आसपास होने वाली ऐसी गतिविधियों पर आवाज़ नहीं उठाते! आप भी नज़र रखें, खुद को सशक्त बनाएं और जरूरत पड़ने पर अपनी सह-भागिता निभाएं| https://humaarisarkaar.in/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE-%E0%A4%B8%E0%A4%AD%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A4%B0-%E0%A4%B9%E0%A4%AE-%E0%A4%9C/
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Last Updated March 6, 2021